चलती है
प्यार व विश्वास की
पटरी पर
कभी सवारी-गाड़ी की तरह
कभी माल-गाड़ी की तरह
तो कभी तीव्र गति से चलने वाली
मेल एक्सप्रेस
राजधानी एक्सप्रेस
शताब्दी या वन्देभारत की तरह
गाड़ी का प्रकार
निर्भर करता है
क्षेत्र, काल व परिस्थिति पर
कभी रिश्ते की रेल को
तीव्र चलना होता है
तो कभी
सवारी गाड़ी की तरह
धीरे-धीरे
इस गाड़ी से चलकर
गन्तव्य पर पहुँचने में
समय तो अधिक लगता है
परंतु इस सफ़र का
आनंद अलग होता है
सभी से मिलकर
सभी की सुनकर
और सभी के साथ-साथ चलकर
रिश्ते की रेल का
वास्तविक सुख
सवारी गाड़ी में चलने में ही मिलता है
तीव्रता में गन्तव्य तक तो
हम समय से पहले पहुँच जाते है
परंतु कई बार साथ चलने वालों के
ठीक से दर्शन भी नहीं होते
हमें केवल
पहुँचने की जल्दी होती है
और माल-गाड़ी
रिश्तों के भार को ढ़ोती हुई
दिखाई देती है
यों तो माल गाड़ी भी
उसी पटरी पर चलती है
जिन पर अन्य गाड़ियाँ चलती हैं
परंतु
प्यार व विश्वास की पटरी पर माल
बहुत हिलते-ढुलते
अपने निर्धारित गन्तव्य पर पहुँचता है
पाथेय के रूप में
किसी विशेष समय में
तीव्रता अवश्यंभावी होती है
परन्तु हमेशा तीव्रता का भाव
रिश्तों में निकटता लाने में
सहायक नहीं होता
रेल चाहे कोई भी हो
पटरी एक ही होती है
रिश्तों की रेल
प्यार व विश्वास की पटरी पर चलती है