Thursday, February 25, 2021

रिश्ते 3

कई रिश्ते बन जाते हैं बोझ
जिन्हें हम ढोते हैं,
डर से 
परिवार के, समाज के

मुस्कुराते हैं ऐसे रिश्ते
दर्द को छुपाए,
ऐसे रिश्ते चलते नहीं
चलाए जाते हैं, या 
ख़त्म हो जाते हैं,
वैसे तो रिश्तों जैसा
इनमें कुछ होता ही नहीं है
परंतु ये 
रिश्तों जैसे दिखाई देते हैं,
कुछ लोग इन्हें
अधूरे रिश्तों की संज्ञा देते हैं. 

रिश्ते होते हैं या नहीं होते
इनमें अधूरा या पूरा जैसा
कुछ नहीं होता,

हम चलते हैं
और इनको किसी तरह चलाते हैं,
खींचते हैं, ढोते हैं,
परिवार व समाज के रिश्ते
इन रिश्तों पर हावी रहते हैं,
इस प्रकार के रिश्तों का
अंत स्वतः ही हो जाता है,
मात्र एक औपचारिकता भर ही होता है
इनको जीवित रखना

Tuesday, February 23, 2021

रिश्ते 2

रिश्तों में होता है
आदर व अधिकार, 
आदर व्यक्ति का नहीं 
रिश्ते का होता है. 
रिश्तों में होते हैं कर्तव्य, 
पर कोई लेनदेन जैसा 
कुछ नहीं होता है 
रिश्तों में, 
समझ, सम्वेदना, साथ व सहयोग 
रिश्तों में आदर व अधिकार के 
भाव को जीवित रखते हैं, 
और स्वभाविक स्वरूप में 
कर्तव्य अपना बोध कराते हैं, 
किसी हिसाब से, 
किसी गणित से 
परे होते हैं ऐसे रिश्ते 
और इस भाव से मजबूत भी होते हैं, 
ऐसे रिश्ते चलते रहते है, 
धूप और बरसात में, 
जाड़े और बसंत में, 
चलते रहते हैं बिना रुके, 
रुकते तो हम हैं


Sunday, February 21, 2021

रिश्ते 1

रिश्ते चलते हैं दौड़ते हैं
और हम लोग वहीं के वहीं
खड़े रहते हैं,
अड़े रहते हैं,
रिश्ते कहीं से कहीं 
पहुँच जाते हैं
उम्र के साथ,
और कभी कभी हम 
रिश्तों के साथ
बड़े हो जाते हैं
और खड़े हो जाते हैं,
सही व ग़लत के तर्क से बहुत दूर,
सही व ग़लत रिश्ता तय करने लगता है.
रिश्ते चलते हैं दौड़ते हैं



रिश्ते बनते हैं 
निवेश से, 
परिवेश से, 
विनिवेश से भी. 
समय व संयम का निवेश 
और हमको प्रदत्त 
या फिर हमारे द्वारा 
चुना हुआ परिवेश, 
सब कुछ चलता रहता है 
अपनी गति से 
बिना किसी कृत्रिम प्रयास के, 
अपनी स्वाभाविक प्रवृत्ति से

निवेश की क्षमता व शक्ति 
करती है निर्धारित
रिश्ते की प्रगाढ़ता व पवित्रता को

रिश्ते चलते रहते हैं, 
पीढ़ी दर पीढ़ी, 
हम रुक जाते हैं, 
थम जाते हैं 
और फिर रिश्ते तय करते हैं 
हमारी अंतिम यात्रा की भव्यता, 
रिश्ते जीवित रहते हैं, 
चलते रहते हैं

रिश्ते बनते हैं 
विनिवेश से भी. 
रिश्तों में विनिवेश भी होता है, 
तब जब रिश्तों का आशय 
उसके उपयोग का होता है, 
ऐसे रिश्तों की कोई बुनियाद नहीं होती, 
वे सब विनिवेश पर निर्भर रहते हैं, 
इनका बनना व बिगड़ना, 
रहना और टूट जाना, 
सब हवा के रुख़, 
कुर्सी की आयु, 
भविष्य में पैदा होने वाली 
सम्भावनाओं व विनिवेश से जुड़े 
जोखिम पर आधारित होता है, 

ऐसे रिश्ते केवल दिखाने वाले होते हैं 
और इनकी आयु भी विनिवेश की 
शर्तों पर आधारित होती है, 
ऐसे रिश्तों को बनाते समय 
“नियम व शर्तें लागू” 
पर टिक करना ज़रूरी होता है. 
ऐसे रिश्ते ज़रूरतों के अनुसार चलते हैं

रिश्ते 30

गाँठ या यों कहें ग्रंथि रिश्तों के जीवन में बाधा भी बनती हैं और स्वावलोकन का कारण भी, बेहतर इंसान बनने की ओर प्रेरित भी करती हैं, और अहंकार ...