Sunday, February 21, 2021

रिश्ते 1

रिश्ते चलते हैं दौड़ते हैं
और हम लोग वहीं के वहीं
खड़े रहते हैं,
अड़े रहते हैं,
रिश्ते कहीं से कहीं 
पहुँच जाते हैं
उम्र के साथ,
और कभी कभी हम 
रिश्तों के साथ
बड़े हो जाते हैं
और खड़े हो जाते हैं,
सही व ग़लत के तर्क से बहुत दूर,
सही व ग़लत रिश्ता तय करने लगता है.
रिश्ते चलते हैं दौड़ते हैं



रिश्ते बनते हैं 
निवेश से, 
परिवेश से, 
विनिवेश से भी. 
समय व संयम का निवेश 
और हमको प्रदत्त 
या फिर हमारे द्वारा 
चुना हुआ परिवेश, 
सब कुछ चलता रहता है 
अपनी गति से 
बिना किसी कृत्रिम प्रयास के, 
अपनी स्वाभाविक प्रवृत्ति से

निवेश की क्षमता व शक्ति 
करती है निर्धारित
रिश्ते की प्रगाढ़ता व पवित्रता को

रिश्ते चलते रहते हैं, 
पीढ़ी दर पीढ़ी, 
हम रुक जाते हैं, 
थम जाते हैं 
और फिर रिश्ते तय करते हैं 
हमारी अंतिम यात्रा की भव्यता, 
रिश्ते जीवित रहते हैं, 
चलते रहते हैं

रिश्ते बनते हैं 
विनिवेश से भी. 
रिश्तों में विनिवेश भी होता है, 
तब जब रिश्तों का आशय 
उसके उपयोग का होता है, 
ऐसे रिश्तों की कोई बुनियाद नहीं होती, 
वे सब विनिवेश पर निर्भर रहते हैं, 
इनका बनना व बिगड़ना, 
रहना और टूट जाना, 
सब हवा के रुख़, 
कुर्सी की आयु, 
भविष्य में पैदा होने वाली 
सम्भावनाओं व विनिवेश से जुड़े 
जोखिम पर आधारित होता है, 

ऐसे रिश्ते केवल दिखाने वाले होते हैं 
और इनकी आयु भी विनिवेश की 
शर्तों पर आधारित होती है, 
ऐसे रिश्तों को बनाते समय 
“नियम व शर्तें लागू” 
पर टिक करना ज़रूरी होता है. 
ऐसे रिश्ते ज़रूरतों के अनुसार चलते हैं

1 comment:

  1. बहुत सुंदर विश्लेषण है मानवीय रिश्तों का

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