आदर व अधिकार,
आदर व्यक्ति का नहीं
रिश्ते का होता है.
रिश्तों में होते हैं कर्तव्य,
पर कोई लेनदेन जैसा
कुछ नहीं होता है
रिश्तों में,
समझ, सम्वेदना, साथ व सहयोग
रिश्तों में आदर व अधिकार के
भाव को जीवित रखते हैं,
और स्वभाविक स्वरूप में
कर्तव्य अपना बोध कराते हैं,
किसी हिसाब से,
किसी गणित से
परे होते हैं ऐसे रिश्ते
और इस भाव से मजबूत भी होते हैं,
ऐसे रिश्ते चलते रहते है,
धूप और बरसात में,
जाड़े और बसंत में,
चलते रहते हैं बिना रुके,
रुकते तो हम हैं
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