'हाँ होती है
जब मिलते हैं होती है’
‘मतलब’
‘जब मिलते हैं तभी होती है'
अब
बात करने के लिए मुलाकात नहीं होती
मुलाक़ात और बात का
यही रिश्ता अब हो गया है
बात के लिए मुलाक़ात नहीं होती,
मुलाक़ात किसी काम के लिए ही होती है
और बात भी काम की ही होती है
बिना काम के बात,
या मुलाकात अब नहीं होती
बात भी नहीं होती
मुलाक़ात, काम, और बात का
यही रिश्ता है अब
बात के लिए मुलाक़ात होती थी
बात के विषय होते थे
और कई बार
विषय आवश्यक भी नहीं होते थे
व्यक्तिगत, पारिवारिक, राष्ट्रीय, अथवा वैश्विक
धार्मिक, सामाजिक, अथवा राजनीतिक
मौलिक-अमौलिक
भौतिक-अभौतिक
देश, काल, परिस्थिति, की बात
घर, बाहर की बात
हाल-चाल की बात
लिखने-पढ़ने की बात
किताबी और किताबों की बात
विचार व विचारकों की बात
दर्शन और दार्शनिकों की बात
अब बात के लिए मुलाकात नहीं होती
ऐसा नहीं है कि कोई बात नहीं होती
मुलाकात होती है तो बात होती है
काम के लिए मुलाकात होती है
मुलाकात होती है तो बस
काम की बात होती है
बात का विषय केवल काम रह गया है
काम-क्रोध-लोभ-मोह
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष