Sunday, June 1, 2025

रिश्ते 35

रिश्तों का भूगोल निराला होता है
दूरियाँ या नज़दीकियाँ
उतनी महत्वपूर्ण नहीं होतीं 
जितना रिश्तों को बनाये रखने का
आशय व रिश्तों में विश्यास,
हम दूर रहकर भी
रिश्ते निभाते हैं
और पास रहते हुए भी
रिश्तों को बिगाड़ लेते हैं.
 
रिश्तों में पारस्परिक प्रेम व स्नेह
बरकरार रहता है,
मीलों दूर रहते हुए भी.

मिलना या न मिल पाना
रिश्तों में दूरी नहीं पैदा करता
यदि रिश्तों में सम्मान भाव हो,
एक दूसरे के प्रति
सहजता व स्नेह का भाव हो.

रिश्ते दूर रहकर भी
बखूबी निभाये जा सकते हैं
यदि रिश्तों में नज़दीकियाँ हों.
ज़बरदस्ती की नज़दीकी से
सुकून की दूरी अच्छी है.
ठीक उसी प्रकार
जैसे नज़दीक रहते हुए भी
बातचीत न होना
और दूर रहते हुए भी
कुशलक्षेम जानने की
उत्सुकता होना
और
मिलने का उत्साह
जीवित रहना

हमनें पढ़ा था 
रहिमन धागा प्रेम का, 
मत तोड़ो चटकाय;
टूटे से फिर ना जुड़े, 
जुड़े गाँठ पड़ जाय।

एक तरफ धागे हैं
जो उलझ कर
और भी करीब आ जाते हैं
एक तरफ रिश्ते हैं
जो जरा सा उलझते ही
टूट जाते हैं

धागे और मोती का भी रिश्ता 
अमिट होता है
उनका साथ 
और एक दूसरे के प्रति 
कृतज्ञता का भाव 
उनकी नज़दीकियाँ 
नजरंदाज नहीं की जा सकतीं हैं. 

सच में
रिश्तों का भूगोल निराला होता है

रिश्ते 34

 रिश्तों का सच जानना

बहुत कठिन हो जाता है,
जब रिश्तों में सरलता का
अभाव होता है।

रिश्तों का जीवट रहना,
उनके जीवित रहने से
कहीं अधिक
महत्वपूर्ण होता है।

कई बार हम
इस प्रश्न का सामना करते हैं
कि क्या रिश्ते सत्य हैं।

मुझे लगता है
सत्य को परिभाषित करना
और उसको रिश्तों में ढूँढना
बहुत ही मुश्किल है।

सत्य सत्य होता है
और रिश्ते रिश्ते होते हैं,
रिश्तों के सच को
जानने से कहीं अधिक
रिश्तों को जानना होता है,
उनके अपने स्वरूप को जानना,
बिना किसी दिमाग़ी मशक़्क़त किए,
बिना किसी गुणा-गणित के,
सहज भाव से।

रिश्ते स्वयं बोलने लगते हैं,
संवाद करने लगते हैं,
अपने जीवट होने का
प्रमाण देने लगते हैं,
रिश्ते चलते रहते हैं। 

रिश्ते 35

रिश्तों का भूगोल निराला होता है दूरियाँ या नज़दीकियाँ उतनी महत्वपूर्ण नहीं होतीं  जितना रिश्तों को बनाये रखने का आशय व रिश्तों में विश्यास, ...