रिश्तों का गणित
अनूठा होता है
हिसाब-किताब
जोड़ना-घटाना
गुणा-भाग
मोल-भाव
लेना-देना
यह सब
रिश्तों को कमजोर करता है
फिर भी
प्रायः जोड़ना-घटाना ही
रिश्तों का मापदण्ड होता
प्रतीत होता है
रिश्ते परे होते हैं
किसी भी गणित से
जोड़ना-घटाना
जहाँ एक ओर
रिश्तों की नींव
कमजोर करता है
वही रिश्तों को
पत्थर बना देता है
रिश्तों की परिधि
रिश्तों के घनत्व को
प्रभावित करती है
रिश्तों की ज्यामिति
प्रकार और पैमाने से इतर होती है
रिश्तों का मूल और ब्याज
रिश्तों के मूल्य, निवेश और प्रत्याय
से बहुत भिन्न होता है
मूल्य, क़ीमत और मोल-भाव
रिश्तों के मूल को
बहुत प्रभावित करता है
मूल की कोई क़ीमत
कभी हो ही नहीं सकती
मोलभाव में उलझे रिश्ते
अभाव व प्रभाव के माध्यम से
रिश्तों को प्रभावित करते हैं
और नकारात्मक विचारों को
जन्म देते हैं
अभाव का अनुभव
और अनुभव का अभाव
सारी गणित
इन्ही के मध्य
चलती रहती है
दोनों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है
व्यक्तित्व के बनाने में
रिश्तों को बनाने में, सजाने-संवारने में
अभाव का अनुभव
सशक्त बनाता है
जड़ों को मज़बूत रखता है
दृष्टिकोण को
परिपक्व बनाता है
तो अनुभव का अभाव
परिपक्वता से दूर रखता है
अक्सर
अपरिपक्वता भी मददगार होती है
रिश्तों को सुधारने में
रिश्तों को बचाने में
अनुभव का अभाव
कई बार व्यक्ति को धरातल पर रखता है
उड़ने से रोकता है
अपने सरल-सहज-नैसर्गिक स्वरूप में
बिना किसी कृतिमता के
रिश्ते चलते रहते हैं
भाषा अनुभूति को अभिव्यक्त करने का एक सशक्त माध्यम है। जीवन को देखने का सबका दृष्टिकोण अलग होता है। चिंतन व मंथन से विचार का जन्म होता है, वहीं अवलोकन से अनुभूति के दर्शन का ज्ञान होता है। जो कुछ अच्छा लगता है, उसको अपने नैसर्गिक प्रवाह में रखने का मेरा प्रयास है यह ब्लॉग। भाषा के बंधन से परे ..
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रिश्ते 36
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