जिन्हें हम ढोते हैं,
डर से
परिवार के, समाज के
मुस्कुराते हैं ऐसे रिश्ते
दर्द को छुपाए,
ऐसे रिश्ते चलते नहीं
मुस्कुराते हैं ऐसे रिश्ते
दर्द को छुपाए,
ऐसे रिश्ते चलते नहीं
चलाए जाते हैं, या
ख़त्म हो जाते हैं,
वैसे तो रिश्तों जैसा
इनमें कुछ होता ही नहीं है
परंतु ये
ख़त्म हो जाते हैं,
वैसे तो रिश्तों जैसा
इनमें कुछ होता ही नहीं है
परंतु ये
रिश्तों जैसे दिखाई देते हैं,
कुछ लोग इन्हें
अधूरे रिश्तों की संज्ञा देते हैं.
कुछ लोग इन्हें
अधूरे रिश्तों की संज्ञा देते हैं.
रिश्ते होते हैं या नहीं होते
इनमें अधूरा या पूरा जैसा
कुछ नहीं होता,
इनमें अधूरा या पूरा जैसा
कुछ नहीं होता,
हम चलते हैं
और इनको किसी तरह चलाते हैं,
खींचते हैं, ढोते हैं,
परिवार व समाज के रिश्ते
इन रिश्तों पर हावी रहते हैं,
इस प्रकार के रिश्तों का
अंत स्वतः ही हो जाता है,
मात्र एक औपचारिकता भर ही होता है
इनको जीवित रखना
और इनको किसी तरह चलाते हैं,
खींचते हैं, ढोते हैं,
परिवार व समाज के रिश्ते
इन रिश्तों पर हावी रहते हैं,
इस प्रकार के रिश्तों का
अंत स्वतः ही हो जाता है,
मात्र एक औपचारिकता भर ही होता है
इनको जीवित रखना