खून के रिश्ते,
जिनको चलना ही होता है,
कभी ख़ुशी से तो कभी नाखुश रहकर.
कभी नरमी से तो कभी गर्मी से,
जीवन का ज्वार-भाटा
इस रिश्ते से ही चलता है,
कभी प्यार के प्रभाव में
तो कभी अभाव में,
परिवार की ऊर्जा होता है ऐसा रिश्ता,
खून के रिश्ते में
चुनाव या विकल्प की कोई गुंजाइश नहीं होती,
सो कभी कभी कहीं कहीं
ये बोझ बन जाते हैं,
निभाना मुश्किल हो जाता है
कई बार असम्भव भी,
जहां एक ओर खून के रिश्तों में
अपेक्षायें होती हैं,
वहीं संरक्षण का एक मज़बूत पुट भी होता है.
जब कभी ज़रूरत होती है
खून का क़र्ज़ उठाने का जज़्बा भी होता है
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