बदलते समय में कोई कमिट होना नहीं चाहता है,
कमिट्मेंट से डरते हैं आज के युवा,
शायद इसीलिए रिश्ते बनाने पर विश्वास नहीं करते.
पतंगो को रिश्तों की डोर से उड़ाया जाता है,
जिस डोर पर कमिट्मेंट का इन्सुलेशन होता है,
जो उसको मज़बूती प्रदान करता है.
कमिट्मेंट के अभाव में रिश्ते अवसरवाद के शिकार होते हैं,
सिर्फ़ काम के रिश्ते.
यूज़ एंड थ्रो वाली परम्परा को प्रचारित करने वाली पीढ़ी
रिश्तों के महत्व को नकारना तो जानती है
परंतु इतनी साहसी भी नहीं दिखाई देती है
जो इस सोच से सम्बद्द जोखिम लेने हेतु तैयार हो.
उनकी जीवन शैली और कमिट न रहने की सोच
उनकी जीवन शैली और कमिट न रहने की सोच
उनको बाहरी और क्षणिक सुःख तो प्रदान करती है
परंतु आंतरिक रूप से कमजोर कर देती है.
यही कारण है कि वे स्ट्रेस में रहते हैं,
कोई नहीं होता उनकी बात सुनने वाला,
उनके सिर को कंधा देने वाला,
उनके आंसुओं को महसूस करने वाला,
रिश्ते परस्पर कमिट्मेंट से मज़बूत ही नहीं होते
बल्कि कंधा भी बनते हैं और कान भी,
आंसुओं को पत्थर होने से रोकते भी हैं
और आंसुओं के कारण बने व्यक्तियों को टोकते भी हैं.
कमिट्मेंट रिश्तों का एक अभिन्न हिस्सा होता है
जिसके बिना कोई रिश्ता, रिश्ता नहीं होता.
उत्तर-आधुनिक सोच जीवन को कमिट्मेंट से इतर देखती है,
शायद इसीलिए रिश्ते निभाना मुश्किल लगता है,
और रिश्ते बोझ लगते हैं.
मकानों में ही रहते हैं ऐसे रिश्ते,
कभी घर नहीं होते.
कमिट्मेंट के इन्सुलेशन के अभाव में
रिश्तों की डोर बहुत नाज़ुक हो जाती है.
ऐसी डोर से उड़ाई जाने वाली पतंगें बहुत जल्द कट जाती हैं या काट दी जाती हैं,
कटी पतंगो को लूटा भी जाता है और फाड़ा भी.
कई बार लड़ाइयों का कारण बन जाती हैं, ऐसी पतंगें.
हवा के थपेड़े सहने की शक्ति भी नहीं होती है ऐसे रिश्तों में.
कमिट्मेंट के अभाव में रिश्ते मर जाते हैं,
और हम चलते रहते हैं,
मशीन की तरह,
और ऊर्जा समाप्त होने पर बंद हो जाती है मशीन.
यही कारण है कि वे स्ट्रेस में रहते हैं,
कोई नहीं होता उनकी बात सुनने वाला,
उनके सिर को कंधा देने वाला,
उनके आंसुओं को महसूस करने वाला,
रिश्ते परस्पर कमिट्मेंट से मज़बूत ही नहीं होते
बल्कि कंधा भी बनते हैं और कान भी,
आंसुओं को पत्थर होने से रोकते भी हैं
और आंसुओं के कारण बने व्यक्तियों को टोकते भी हैं.
कमिट्मेंट रिश्तों का एक अभिन्न हिस्सा होता है
जिसके बिना कोई रिश्ता, रिश्ता नहीं होता.
उत्तर-आधुनिक सोच जीवन को कमिट्मेंट से इतर देखती है,
शायद इसीलिए रिश्ते निभाना मुश्किल लगता है,
और रिश्ते बोझ लगते हैं.
मकानों में ही रहते हैं ऐसे रिश्ते,
कभी घर नहीं होते.
कमिट्मेंट के इन्सुलेशन के अभाव में
रिश्तों की डोर बहुत नाज़ुक हो जाती है.
ऐसी डोर से उड़ाई जाने वाली पतंगें बहुत जल्द कट जाती हैं या काट दी जाती हैं,
कटी पतंगो को लूटा भी जाता है और फाड़ा भी.
कई बार लड़ाइयों का कारण बन जाती हैं, ऐसी पतंगें.
हवा के थपेड़े सहने की शक्ति भी नहीं होती है ऐसे रिश्तों में.
कमिट्मेंट के अभाव में रिश्ते मर जाते हैं,
और हम चलते रहते हैं,
मशीन की तरह,
और ऊर्जा समाप्त होने पर बंद हो जाती है मशीन.
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