चौखटें लांघते हैं
खिड़कियों से झांकते हैं
रोशनदानों को निहारते हैं
चहारदीवारी पर छलांग लगाते हैं
छतों पर घूमते हैं
दुछत्तियों में छिपते हैं
कमरों में भटकते हैं
रिश्ते पर्दे हटाते हैं और डालते भी हैं
करवटें बदलते हैं
दरारों से झांकते हैं
कई बार कोनों में दुबकते भी हैं
आँगन में छाँव तलाशते हैं
परछाई से साथ चलते हैं
दीवारों पर टांग दिए जाते हैं
बड़े क़रीने से
फूलमालाओं के साथ
रिश्ते चलते रहते हैं
यादों के साथ
रुकते तो हम हैं.
No comments:
Post a Comment