कई रूप होते हैं.
इस अवसरवादी समय में
दोस्ती के रिश्ते के साथ
जितने प्रयोग हुए हैं
शायद ही किसी और रिश्ते के साथ हुए हों,
दुरुपयोग भी.
इनमें से वे जिनकी बुनियाद
केवल अपना मतलब पूरा करने की होती है,
मतलबानुसार ख़त्म हो जाते हैं,
सही मायने में तो
उन्हें रिश्ता माना ही नहीं जाना चाहिए
लेकिन फिर भी लोग उन्हें भी
रिश्ता कहते हैं
तो ठीक है मान लेते हैं,
लेकिन ऐसे रिश्तों की
कोई उम्र नहीं होती
सो ऐसे रिश्ते चलते नहीं हैं,
बल्कि चलाए जाते हैं.
सुविधानुसार.
समयानुसार.
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